Friday, 18 October 2019

आइए नया इतिहास लिखें, लेकिन लिखेंगे क्या ?



केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है वक्त आ गया है जब इतिहास को नए नज़रिये से लिखा जाए। उन्होंने कहा कि सावरकर नहीं होते तो 1857 का स्वतंत्रता संग्राम इतिहास में दर्ज नहीं हो पाता। उनसे पूछा जा सकता है कि इतिहास कोई एक व्यक्ति बैठ कर लिख रहा था क्या ? अब अगर 1857 की घटना को 1883 में जन्मे व्यक्ति ने पहली बार बताया तो सुनकर हंसी आना स्वाभाविक है क्योंकि लाखों साल पहले जन्मे राजा राम की कहानी हम ऐेसे सुनाते हैं मानो वे घटनाएं हमारे सामने हुई। कार्ल मार्क्स ने 1857-59 के समय हुई घटनाओं को भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के रूप में लिखा था, और वह भी उसी समय, इसका पुख्ता रिकार्ड है। 1883 में सावरकर का जन्म हुआ और मार्क्स दुनिया छोड़ गए। मतलब मार्क्स ने मरने से पहले ही लिखा होगा यह भी तय है। सावरकर ने अगली सदी शुरू होने के बाद ही लिखा था
खैर, छोड़िए.


 इतिहास बदला जाना है.. स्वतंत्रता के आंदोलन के समय 1885 में राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म हुआ। 1925 में सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का। अब बताया जाना है कि कांग्रेस ने आजादी के लिए कुछ नहीं किया केवल आरएसएस ने किया। तब आरएसएस के संस्थापकों की किताबों में लिखे उस बयान का क्या करेंगे जिसमें लिखा है कि आरएसएस अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में संगठन के रूप में शामिल नहीं होगा, जो शामिल होना चाहता है वह निजी हैसियत से शामिल हो सकता है। उस लिखे हुए का क्या होगा, जिसमें लिखा है कि हिंदू व आरएसएस के कार्यकर्ता अंग्रेजों से संघर्ष में अपनी ऊर्जा व्यर्थ न करें, बल्कि उसे बचा कर रखें ताकि स्वतंत्रता के बाद मुसलमानों से संघर्ष में काम आ सके। क्या अपने ही संस्थापकों की बातें झुठलाई जाएंगी।
क्या बताएंगे ? अंग्रेज भारत को 1947 में छोड़ गए थे, लेकिन भारत को स्वतंत्रता 2014 में मिली। जवाहरलाल नेहरू को अंग्रेज एजेंट बना कर गए थे और नरेंद्र मोदी देश के पहले चुने हुए प्रधानमंत्री थे। तब 1947 से 2014 के बीच हुई घटनाओं, चुनावों, संसद, सुप्रीम कोर्ट, सरकारी कंपनियों, बांधों, हवाई सेवा आदि के बारे में क्या बताओगे ? मान लिया संसद का नया भवन बन रहा है, सुप्रीम कोर्ट का भी नया भवन बन रहा है। लेकिन सरदार पटेल के बारे में क्काया बताओगे, जिनकी विशालकाय प्रतिमा चीन से बनवा कर लगाई गई है। भारत कैसे और कब बना, राज्य कैसे बने पुराने रजवाड़ों का क्या और कैसे हुआ, क्या बताओगे। सबका तो लिखित इतिहास मौजूद है। कश्मीर को भारत का हिस्सा कब से बताओगे, तो पाकिस्तान का क्या होगा, लाहौर किसने बनवाया था, गांधार कहां और कैसे चला गया, क्या ये सब इतिहास का हिस्सा नहीं होंगे।

एचआरडी या मानव संसाधन मंत्रालय देश का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण विभाग है। इसमें शिक्षा भी शामिल है और शिक्षा प्रणाली को क्या नया स्वरूप देना है वह भी शामिल है। देश के युवाओं को युग की जरूरतों के मुताबिक ढालने के लिए तैयार करना भी, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ाना भी। शिक्षा आप समझते हैं..जैसी देंगे वैसे ही भावी पीढ़ियां बनेंगी। नए प्रधानमंत्री गुजरात में करीब 13 साल मुख्यमंत्री रहे हैं। वहां के शिक्षा का स्तर और पाठ्यपुस्तकों में तथ्यात्मक गलतियां सामने आती रही हैं।
खैर, वाजपेयी सरकार में एचआरडी मंत्री थे डा. मुरली मनोहर जोशी जो अच्छे खासे पढ़े लिखे हैं प्रोफेसर रहे हैं। उन्हें इस बार उनकी पार्टी ने किनारे  कर दिया। क्योंकि उन्होंने स्कूल चलें हम और सर्वशिक्षा अभियान तो चलाया  लेकिन स्कूल कालेजों के सिलेबस का भगवाकरण पूरा करने में नाकाम रहे। अब कोई भी ज्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति शिक्षा मंत्री बनेगा तो वो भारत के इतिहास और अतीत से ज्यादा खिलवाड़ नहीं कर सकेगा।


श्रीकृष्ण की गाथा केवल रासलीला से नहीं उनकी राजनीतिक चतुरता से भी भरी पड़ी है, लेकिन तब यह तो बताना ही पड़ेगा कि कैसे एक इंच जमीन के लिए (या पांच गांवों के लिए या अपने हक के लिए) भाई भाई से लड़े थे, अर्जुन तो हथियार उठाने को तैयार नहीं थे, उन्हें कृष्ण ने कैसे मनाया, तब गीता सार या श्रीमदभगवतगीता को कैसे समझाएंगे।
 यह तो बताना पड़ेगा जब भारत-भूमि पर मुसलमान नहीं आए थे तब लोग लड़ते क्यों थे, राजा एक-दूसरे पर हमला कैसे और क्यों करते थे। वो किस धर्म के होते थे। क्या फिर शैव, शाक्त, वैष्णव आदि आदि की लड़ाई की परतें उधड़नी बंद हो जाएंगी।
क्या प्राचीन वर्ण व्यवस्था और उससे उपजी कुरीतियों को इतिहास के पन्नों से हटा देंगे, तब राजा राम मोहन राय और सती प्रथा का उल्लेख कैसे करेंगे, राणी सती मंदिर का जिक्र करेंगे तो सती प्रथा आज की 21वीं सदी से 22वीं सदी में जाती जनता को कैसे सही बताएंगे। मध्य कालीन भारतीय इतिहास का कोई जानकार यह तथ्य नहीं बदल सकता कि बाबर भारत क्यों आया था, उसने क्या किया, मुगल साम्राज्य का अस्तित्व किताबों से खत्म नहीं किया जा सकता क्योंकि उसके अवशेष देशभर ही दुनियाभर में बिखरे पड़े हैं। अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था, अकबर की जमीन नापतौल की व्यवस्था, कोस मीनार, सर्वधर्म समभाव, दीन ए इलाही को कैसे खत्म करेंगे। महाराणा प्रताप, महारानी लक्ष्मी बाई और उन्हीं के जैसे योद्धाओं की गाथा बताने के लिए यह तो बताना ही पड़ेगा कि उन्होंने संघर्ष किया किससे था। गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस लिखे जाते समय शासन किसका था।
आधुनिक काल में अंग्रेजों का भारत आना, भारतीय संस्कृति को बरबाद करना, सारा सोना लूट कर ले जाने वाला बताओगे तो सारे ज्योतिर्लिंग, कामाख्या पीठ, बद्री-केदार, कैसे बच गए, श्रीपद्मनाभमंदिर से निकले भारी भरकम सोने हीरे जवाहरात के बारे में क्या बताओगे। अंग्रेजों के राज में ये बच कैसे गए, कुतुब मीनार, ताज महल, लाल किला, प्राचीन महल, कैसे रह गए। फिर क्या बताओगे, माना पुष्पक विमान श्रीरामचंद्र के जमाने में था रावण के पास भी कुछ विमान थे जिनमें से एक में उसने सीतामाता का अपहरण कर लिया था, लेकिन यह तो बताना पड़ेगा कि देश का सबसे लंबा सड़क मार्ग शेरशाह सूरी ने बनवाया थे, रेलवे लाइनें भारत में अंग्रेजों ने बनवाई थीं।
 आधुनिक भारत में क्या बताएंगे..अंग्रेजों से लड़कर आजादी किसने हासिल की। शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, जलियांवाला बाग, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे के साथ आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का नाम भी लेना पड़ेगा। गांधी बाबा को दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन से फेंक दिया गया था उसका बदला उन्होंने अंग्रेजों से लिया यह कह कर टाल नहीं सकेंगे। यह बताना पड़ेगा कि उस अधनंगे रहने वाले डेढ़ पसली के से आदमी ने छप्पन इंच का सीना न होते हुए भी अंग्रेजों की नाक में कैसे दम कर रखा था। वीर सावरकर की गाथा और उनकी किताबों के आदर्श बताते समय यह भी बताना पड़ेगा कि वे फ्रांस के बंदरगाह के पास जहाज से कूदे क्यों थे। और भी बहुत सी बातें हैं।

जैसे 1925 में आरएसएस बनने के बाद से उसके स्वयंसेवक कर क्या रहे थे। आजादी की लड़ाई में उनका अपना क्या योगदान था। जो लोग उस समय पुलिस में थे क्या उन्होंने आजादी के लिए लड़ रहे आंदोलनकारियों का साथ दिया था या अंग्रेजों के आदेश पर उन्होंनें आंदोलनकारियों पर लाठी-गोली चलाई थी। भड़कने की जरूरत नहीं सब किसी न किसी कोर्ट के रिकार्ड, किसी न किसी की डायरी में लिखा है। उस समय के गजट में लिखा है। सरकारी, निजी किताबों, डायरियों में दर्ज है। नई किताबें लिखवाने से उस अतीत को नहीं भुलाया जा सकता।
आजादी की लड़ाई के इतिहास में क्या कांग्रेस के नेताओं का योगदान भूल जाओगे, माना जवाहर नेहरू, या अन्य कांग्रेसियों को भूल जाओगे लेकिन जनसंघ कैसे जन्मा, जनसंघ या भाजपा के पुराने नेताओं ने अपनी राजनीति कैसे शुरू की, यह तो बताना पड़ेगा। भाखड़ा नंगल बांध से लेकर रावतभाटा परमाणु रिएक्टर, पहला परमाणु विस्फोट, भारत-पाक युद्ध, बंटवारे में तत्कालीन भाजपा नेताओं (तब भाजपा नहीं थी, लेकिन उसे बाद में बनाने वाले नेता और आरएसएस तो थे) का क्या योगदान था। यह तो बताना पड़ेगा। आज हर आदमी की जेब में मोबाइल फोन और लैपटाप या कम्प्यूटर कैसे पहुंचा, 2जी का घोटाला बताओगे तो यह बताना पड़ेगा कि फोन की दरें इतनी सस्ती कैसे रहीं।



हां, आर्यभट्ट, वराहमिहिर जैसे विद्वानों की जानकारी व्यापक स्तर फैलाई जा सकती है जो जरूरी भी है। यह बताया जा सकता है कि टेस्ट ट्यूब बेबी का प्रचलन घड़ों में संतान के जन्म के रूप में था, उस समय की अत्याधुनिक सर्जरी के तहत गणेश के सिर पर हाथी का सिर लगाया जाना था। यह अलग बात है कि आधुनिक भारत में एक वैज्ञानिक ने सुअर का दिल मनुष्य के शरीर में लगाया तो उसे प्रोत्साहित करने के बजाय उसकी इतनी छीछालेदर की गई कि छि सुअर का दिल..उसे आत्महत्या करनी पड़ी।
लेकिन भाजपा को ज्यादा पढ़े-लिखे शिक्षा मंत्री की शायद जरूरत नहीं है। क्योंकि वह हर कदम पर सवाल उठा सकता है। सवाल खड़े करने वालों के साथ क्या हो रहा है, यह नजर आ रहा है। प्रेस कांफ्रेंसों में भी। भाजपा के शिक्षामंत्री की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाने वालों को जवाब मिल रहा है..कांग्रेस की चाल है..सोनिया की शिक्षा देखो, बताओ राहुल कहां तक पढ़े हैं। मानो सवाल उठाने वाले सब कांग्रेसी ही हैं। अगर हैं तो कांग्रेस के शासन के प्रधानमंत्री और एचआरडी मंत्री की शैक्षणिक योग्यता देख लो। जवाब है उन्होंने कौन सा तीन मार लिया। जीडीपी, ग्रोथ रेट पर चर्चा से पहले उसी अवधि में आपको देखना पड़ेगा कि दुनिया के सबसे ज्यादा पैसे वाले देश अमेरिका में आया सीक्वेस्टर संकट क्या था। कैसे दुनिया की कार सिटी कहलाने वाले शहर को दिवालिया घोषित होने के लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। क्यों यूरोप और अमेरिकी देशों में गंभीर आर्थिक संकट आया।
लेकिन इस सबके लिए पढ़ा लिखा होना भी जरूरी है। भावनाएं भड़काकर या दूसरों की लाई तकनीक का सहारा लेकर कम जानकार लोगों में महान बनना आसान है लेकिन जानकार लोगों (मोटी कमाई के लालच में पड़े उद्योगपतियों नहीं) को मूर्ख कब तक बना पाओगे। मकसद केवल चुनाव जीतना नहीं, उसके बाद काम करना भी है।

राकेश माथुर

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