राकेश माथुर
नाम रखा है आम आदमी पार्टी, टोपी पहन कर ठीक उसी तरह बताते हैं जैसे एक ऋषि हमेशा अहम ब्रहास्मि कहा करते थे। अभी दिल्ली में सरकार संभालते ही कुछ करने की कोशिश की है नतीजा तीन महीने बाद आएगा। फिलहाल तीन महीने तक असर नहीं पड़ेगा क्योंकि शीला दीक्षित सरकार खजाना भरा हुआ छोड़ कर गई है। अन्ना के बाद केजरीवाल को नेता मानने वालों ने अन्य राज्यों से भी हुंकार भरनी शुरू कर दी है। इससे कांग्रेस पर तो असर पड़ा ही है भाजपा के प्रधानमंत्री की हालत भी कमजोर कर दी है। महज दो महीने की बात है, लोकसभा चुनाव की दस्तक हो जाएगी। कुमार विश्वास ने राहुल के खिलाफ और खुद केजरीवाल ने मोदी के खिलाफ मैदान में ताल ठोकने का फैसला किया है। लोकसभा चुनाव जीतने के लिए पार्टी ने दिल्ली में अपने किए वादे पूरे करने शुरू कर दिए हैं। लेकिन लोग उनकी भी खाल निकालने लगे हैं कि उससे आम आदमी को लाभ कम नुकसान ज्यादा होगा।
देश में दो तरह की परिवर्तनवादी विचारधारा चल रही है। एक केवल उन राज्यों में परिवर्तन चाहती है जहां कांग्रेस की या गैर भाजपाई सरकारें हैं। इन्हें वहां परिवर्तन नहीं चाहिए जहां पहले से भाजपा की सरकारें हैं। वहां इनका दावा है कि जनता ने भाजपा को वोट दिए हैं इसलिए भाजपा की सरकारें हैं। ये भूल जाते हैं कि जहां गैर भाजपाई सरकारें हैं, वे भी वहां की जनता की चुनी हुई हैं। अपने आप वे नेता सत्ता की कुर्सी पर आकर नहीं बैठ गए। कल तक बिहार में सब ठीक था लेकिन जैसे ही नीतीश ने भाजपा से मुंह मोड़ा वहां सब गलत होने लगा। कोई पूछे कैसे, तो जवाब है भाजपा जो सत्ता में नहीं रही। गांधी मैदान में शांति के मसीहा की प्रतिमा के सामने पड़े शव उस हिंसा की गवाही दे रहे थे जिससे केवल एक व्यक्ति को लाभ हुआ, उसकी सुरक्षा बढ़ा दी गई, उसके भाषण सुनने आने वालों की जामा तलाशी शुरू हो गई। इससे पहले भारतीय लोकतंत्र में ऐसा इंदिरा गांधी और राजीव गांधी या बिहार में ललित नारायण मिश्र की हत्या के बाद भी नहीं हुआ था।
खैर, बात झाड़ू वालों की चल रही थी। उनके पहले मुख्यमंत्री ने अपनी सुरक्षा तो लौटा ही दी, लाल बत्ती पर भी बैन लगा दिया। ये अलग बात है कि अब सादी वर्दी में उनकी सुरक्षा में तैनात जवानों पर खर्च बढ़ गया है। वे उत्तर प्रदेश में रहते हैं और दिल्ली की सरकार चलाते हैं। हरियाणा में वे हुंकार भर चुके हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के नाकारापन का जवाब देने के लिए व्यापमं सहित कई घपलों, घोटालों के विरोध में उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी है। गुजरात में भाजपा के बड़े विधायक रहे कनुभाई आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। यानी इस झाड़ू ने पूरे देश में हड़कंप मचा दिया है।
क्षेत्रीय दलों की सरकारों को भी सोचना पडेगा। परकाश सिंह बादल हों, नवीन पटनायक हों, नीतीश कुमार हों या अखिलेश। सब एक लाइन में। जय ललिता को तोड़ अभी नहीं निकल पाया है क्योंकि झाड़ू वाले बाबा के पास दो हथियार नहीं कश्मीर और तमिल मामलों से निपटने के। अम्मा तमिल मुद्दे को भुनाकर तमिलनाडु की सभी 39 सीटें जीतने के चक्कर में है, कलईनार की पार्टी को उनकी बेटी कणि और नेता राजा ही काफी हैं डुबोने के लिए। कांग्रेस दिल्ली में आज तक उन्हीं की करतूतों के लिए गाली खा रही है।
झाड़ू असल में सत्तारूढ़ दलों को नुकसान ज्यादा पहुंचाएगी। चाहे गुजरात, मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ में भाजपा हो या महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी और हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र, असम में कांग्रेस। उत्तर पूर्व का कोई कुछ ठीक से नहीं कह सकते। वहीं एक राज्य है जिसमें विपक्ष नाम की कोई चीज ही नहीं है। उस राज्य के सारे विधायक और सांसद सत्तारूढ़ दल के हैं। वहां झाड़ू का चलना मुश्किल है।
ये मुद्दे साफ करने होगे झाड़ू वाले बाबा को
-कश्मीर के बारे में क्या रुख है
-पाकिस्तान के बारे में क्या चाहते हैं
-अगर हर मामले पर जनमतसंग्रह करवाना चाहते हैं तो क्या पाकिस्तान की इच्छानुसार कश्मीर में भी करवाएं क्या (उनके नेता हां बोलकर सरे आम पिट चुके हैं)
-आतंकवाद पर क्या कहना चाहते हैं
-सिमि, बजरंग दल, विहप सरीखे कट्टरपंथियों के बारे में क्या राय है
-अल्पसंख्यकों (केवल मुसलमान नहीं जैन, सिख, ईसाई, बौद्ध आदि तथा जाट गूजर आदि) के बारे में क्या राय है।
-पूरे देश में बिजली-पानी मुफ्त देंगे क्या (हां तो कितना)
-विदेश पूंजी निवेश के बारे में क्या राय है
-देशी अमीरों पर टैक्स लगाएंगे या रियायत देंगे
-युवाओं को रोजगार देंगे या रोजगार भत्ता
-अस्थायी सरकारी कर्मचारियों को स्थायी करेंगे (पैसा कौन देगा- जनता और अमेरिका के भरोसे तो रह नहीं सकते)
-देश में कोयला भरा पड़ा है...कैसे, किसे क्यों लूटने दोगे
-कर्नाटक, मध्य प्रदेश और राजस्थान के खनिज का क्या करोगे
-अपने अपने एनजीओ के अलावा दूसरों के एनजीओ को भी कुछ दोगे या खुर्शीद के एनजीओ जैसे छोटे -मोटे मुद्दे बना कर पन्ने पन्ने भरवा दोगे
-ये वाड्रा वाला मामला खोलोगे तो भूषणजी महाराज की करतूतें भी खोलोगे या नहीं
सवाल तो बहुत हैं जमाने में, सत्ता में आने से पहले इनके जवाब भी जरूरी हैं। यह कहने से काम नहीं चलेगा कि सरकार मेरी नहीं जनता की है। भइए मोटे वेतन भत्ते आपको मिलेंगे जनता को नहीं। बड़े बड़े पैसे वाले अपनी परियोजनाएं पास करवाने आपके पास आएंगे जनता के पास नहीं
कुछ न कुछ तो बताना ही होगा। आखिर नमो नमस्ते बारंबार की जगह झाड़ू महाराज की जय कोई बोले तो क्यों बोले
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