दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर सत्ता बदल दी है। इसमें जितना योगदान प्रचारतंत्र का रहा उतना इससे पहले के किसी चुनाव में नहीं हुआ। प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार जो अब प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे हैं उन्होंने अपनी हर चुनावी रैली में सत्तारूढ़ दल और उसके नेताओं पर कटाक्ष किए व्यंग्यबाण छोड़े। कहा 60 साल तक उस सरकार ने कोई काम नहीं किया। यह अलग बात है कि जिस इंटरनेट, 3डी तकनीक से उन्होंने प्रचार किया वह वही सरकार लाई थी जिसे खूब निकम्मा, भ्रष्ट, लाचार और कामचोर बताया गया था। जब पूछा जाता कि इस पार्टी के पास ऐसे शाही प्रचार के लिए पैसा कहां से आया तो कहा जाता आपको किसने रोका है आपमें दम है तो आप भी खर्च करो। इस पार्टी के भ्रष्ट लोगों पर सवाल उठाना मानो गवाह था। एक पार्टी के नेता तो इस गुनाह के कारण जेल में हैं। किसी अपराध में नहीं बल्कि तकनीकी कारणों से।
नई सरकार बनने से पहले ही हमें बहुत सी चीजें भूल जाने को कहा गया है। जो साहेब प्रधानमंत्री बन रहे हैं उन्होंने चुनावी रैलियों में सत्तारूढ़ दल की सरकार को फटकारते हुए कहा था कि वह पड़ोस की उस सरकार से बात कर रही है जो हमारे सैनिकों के सिर काट कर ले गया, पाकिस्तान के नेताओं को बिरयानी खिला रही है, जब तक पाकिस्तान हमारे शहीदों के कटे सिर नहीं लौटा देता, दाऊद को हमें नहीं सौंप देता, हाफिज सईद को हमें नहीं सौंप देता उससे कोई बात नहीं नहीं होनी चाहिए..फिर वे जनता से पूछते क्यों भाइयों सही है कि नहीं। भीड़ से आवाज आती सही है..अब जब वे जीत गए उन्होंने सबसे पहला न्योता अपने उसी पड़ोसी कट्टर दुश्मन बताए गए देश के नेता को निमंत्रण दिया है। अब उनकी पुरानी बातों की याद दिलाने पर वे फटकार देते हैं। उनका कहना है कि उन्हीं की पुरानी बातों को उठाने वाले दोनों देशों के संबंध सुधरने नहीं देना चाहते। वही प्रायोजित भीड़ जो कल पाकिस्तान को गालियां दे रही थी, आज वहां के प्रधानमंत्री को बुलाए जाने पर अपने नेता की तारीफ कर रही है। कहती है यह सार्थक पहल है। वोटर हक्का बक्का है। न शहीदों के सिर लौटे, न उस देश ने उस कृत्य के लिए माफी मांगी, न वहां से आतंकवाद बंद हुआ, न आतंकी शिविर खत्म हुए, न उसने कश्मीर पर अपना रवैया बदला। फिर हुआ क्या..ये सत्ता में आने से पहले ही इतनी जल्दी बदल कैसे गए। इनके साथ सुर में सुर मिला कर उठाए गए सवाल अब उठाना देशद्रोह भी माना जा सकता है। फिर पुरानी दोस्ती है, कारोबारी। जनता होती कौन है सवाल उठाने वाली। उसका इस्तेमाल करना था सो भावनाएं भड़का कर हो गया। अब हम अच्छे पड़ोसी की तरह रहना चाहते हैं, व्यापार श्यापार करना चाहते हैं तो इसमें बुरा क्या है। और सैनिक तो नौकरी कर रहे हैं। उन्हें अच्छी तरह पता है कि वे सेना में भर्ती हुए हैं तो कभी न कभी तो जान जाएगी ही। सरकार उन्हें वेतन-भत्ते देती है। दुश्मन की गोली से मारे जाने पर शहीद का दर्जा देती है। खुद नए प्रधानमंत्री ने हिमाचल की एक रैली में कहा था शहीद अपने परिवार का नहीं होता वो पूरे देश का होता है। उस चुनाव क्षेत्र से एक शहीद की मां चुनाव लड़ रही थी, उसके बेटे के नाम पर ही उसका विरोध किया गया। मां को अपमानित करते हुए कहा गया उनका बेटा था तो क्या हुआ शहीद तो देश का था। और उस शहीद की मां को हरवा दिया गया। चुनाव में। न शहीदों के सिर लौटे, न सम्मान। भूल जाओ। क्योंकि किसी ने पहले ही कह दिया है शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले यही बाकी उनका निशां होगा। लोगों को याद होगा सरबजीत सिंह जिसे मंजीत सिंह बता कर लाहौर बम कांड के लिए फांसी की सजा सुनाई गई थी और पाकिस्तान की जेल में पीट पीट कर मार दिया गया था। उसकी बहन के साथ मिलकर इस नई सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं ने सरबजीत को छुड़वाने की कोशिशें की थी। नाकाम रहे वो अलग बात है। अब उसकी बहन भी पूछ रही है कि क्या नवाज शरीफ हो गए हैं। भूल जाओ।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी चुनावी रैलियों में भारत का खूब जिक्र किया था, लेकिन वहां उन्होंने कही था कि वो भारत से दोस्ती कायम करेंगे। रिश्ते सुधारेंगे। उन्हें उस बात पर जनता ने समर्थन दिया था। हमारे यहां समर्थन लिया गया है पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए।
वाजपेयी काल में नवाज ही शरीफ थे। वाजपेयीजी ने दोस्ती की पहल की थी, उधर से करगिल पर हमला हो गया था। वहां तख्ता पलटने के फौजी शासक मुशर्रफ को बातचीत के लिए आगरा बुलाया था, बात बनी नहीं वो बिगड़ कर लौट गए। पता नहीं क्या हुआ इस बीच कोई अधिकृत जानकारी नहीं। लेकिन कांग्रेस के समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जियारत करने अजमेर आए और शिष्टाचार विदेश मंत्रालय़ द्वारा उन्हें जयपुर में एक समय खाना खिलाया गया तो ये पार्टी कितनी बुरी तरह से कांग्रेस पर टूटी थी यह अखबारों में छपा और टीवी पर आया इसलिए उसे भूलना थोड़ा मुश्किल होगा।
पाकिस्तान के एक प्रधानमंत्री थे जुल्फकार अली भुट्टो, वहीं जिन्हें भारत बुला कर इंदिरा गाधी ने शिमला समझौते पर दस्तखत करवाए थे। भारत में कांग्रेस की आलोचना होती है कि उसने 90,000 पाकिस्तानी सैनिकों को यूंही छोड़ दिया। उन भुट्टो को पाकिस्तान में फांसी की सजा सुनाई गई। दुनियाभर के राजनेताओं ने उसका विरोध किया। इंदिरा गांधी ने भी विरोध किया, लेकिन उस समय हमारे यहां मोरारजी भाई प्रधानमंत्री थे (इंदिरा गांधी विपक्ष की नेता) उन्होंने विरोध करने या भुट्टो को रिहा करने की अपील करने से साफ मना कर दिया।
भुट्टो को फांसी पर लटका दिया गया और मोरारजी भाई को 1990 में पाकिस्तान का सबसे बड़ा सिविलियन अवार्ड निशान-ए-पाकिस्तान मिला। उन्हीं भुट्टो ने शिमला समझौता करने के बाद पाकिस्तान पहुंच कर कहा था हम भारत से एक हजार साल तक लड़ेंगे। जब वे शिमला आए थे तो उनके साथ उनकी प्यारी सी किशोरी बेटी बेनजीर भी थी। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी ने कविता लिखी थी मालरोड पर बेनजीर। यही बेनजीर बाद में पाकिस्तान की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी, विस्फोट में मारी गई। उनके पति आसिफ अली जरदारी राष्ट्रपति बने जो मिस्टर 10 परसेंट कहलाते थे।
पड़ोसियों से संबंध सुधारे जाने चाहिए सब मानते हैं। आखिर चारों तरफ से शांति होगी तभी तो देश प्रगति करेगा। राजीव गांधी के समय पड़ोसी देशों का एक संगठन बना कर सार्क नाम दिया गया था। वह इसी उद्देश्य के लिए था। प्रयास बहुत पहले से हो रहे थे यह अलग बात है। इस संगठन में पाकिस्तान भी है बांग्लादेश भी। श्रीलंका भी है और मालदीव भी। अफगानिस्तान, नेपाल भी है और भूटान भी। उसके आगे म्यांमार या बर्मा इसमें नहीं है।
श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्सा को भी आमंत्रित किया गया है। उन्हें उत्तरी श्रीलंका में भारतवंशी तमिलों के मानवाधिकारों उल्लंघन को दोषी अंतरराष्ट्रीय तौर पर माना गया है। उत्तरी श्रीलंका को आजाद तमिल देश बनाने की मांग करने वाले लिट्टे के सफाए के नाम पर उनके नेतृत्व में श्रीलंका की सेना ने वहां रहने वाले आम तमिल लोगों पर भारी अत्याचार किए। ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान के सैनिकों ने बांग्लादेश में वहां के आजादी के संग्राम के समय किए थे। लिट्टे के आतंकियों ने भले ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी हो, लेकिन उसके नेता प्रभाकरण के समर्थक वाइको की पार्टी आज केंद्र में सत्तारूढ़ होने वाली एनडीए में हैं। तमिलनाडु सरकार (मुख्यमंत्री जय ललिता) ने राजपक्सा को भारत बुलाए जाने का सख्त विरोध किया है। जयललिता की पार्टी ने तमिलनाडु की 39 में से 37 सीटें जीती हैं। यानी वहां राज्य में उनकी सरकार है और लोकसभा में राज्य से सबसे ज्यादा सीटें। फिर भी उनकी बात नहीं सुनी जा रही तो कैसा लोकतंत्र। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए भाजपा ने कांग्रेस की यह कह कर कड़ी आलोचना की थी कि उसने श्रीलंका की राजपक्सा सरकार के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंच पर आवाज बुलंद नहीं की थी। खूब बुरा-भला कहा था। दिमाग चकरा गया है। क्या भूलूं क्या याद करूं। कोई ये न कहे कि लिट्टे के सफाए और तमिलों पर अत्याचार में सेना का हाथ था, क्योंकि श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में तत्कालीन सेना अध्यक्ष सरथ फोंसेका भी खड़े हुए थे। इन्हीं राजपक्सा ने कहा था कि सेना ने तो सिर्फ राष्ट्रपति (तब वे खुद ही राष्ट्रपति थे) के आदेश का पालन किया है। फोंसेका चुनाव हार गए थे तो उन्हें कैद कर लिया गया। आरोप था तमिलों पर अत्याचार का। कितना आसान होता है भूल जाना।
बांग्लादेश तो सबको याद होगा। 1971 के भारत-पाक युद्ध में कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मजबूत इरादों से हमारी सेना के जवानों ने पाकिस्तान के दो टुकड़े करवाए थे। वरना वह दोनों तरफ से नाक में दम किए था। उसी पाकिस्तान का पूर्वी हिस्सा है बांग्लादेश। आज के युवाओं को बताना जरूरी है क्योंकि वे केवल यह जानते हैं कि बांग्लादेश से घुसपैठिए आते हैं। बांग्लादेश में बंगाली मुसलमानों की संख्या ज्यादा है और बंगभंग के दौरान अंग्रेजों ने उस इलाके को बंगाल से अलग किया था। आज पश्चिम बंगाल भारत में है लेकिन पूर्वी बंगाल कहीं नहीं है वह अब बांग्लादेश कहलाता है। यानी बंगाल और बांग्लादेश का गर्भनाल का रिश्ता है। आपको न पता हो तो यह जान लें कि भारत और बांग्लादेश दोनों के राष्ट्रगान एक ही व्यक्ति रबींद्र नाथ टैगोर के लिखे हुए हैं। जन गण मन भी और आमार सानार बांग्ला, आमी तोमाए भालोबाशी भी। हमारे नए प्रधानमंत्री जब प्रधानमंत्री नहीं बने थे उन्होंने चुनावी रैलियों में बांग्लादेश से शरण लेने आए सभी हिंदुओं को अपना और मुसलमानों को घुसपैठिया बताया था। कहा था सत्ता में आए तो भारत में रहने वाले सभी बांग्लादेशी घुसपैठियों को खदेड़ दिया जाएगा। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उसका कड़ा विरोध किया था। चुनाव में उनकी तृणमूल कांग्रेस ने राज्य की 42 में से 34 सीटें जीती हैं और भाजपा ने दो। यहां विरोध बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना का नहीं हो रहा। वे तो बंगबंधु शेख मुजीब की बेटी हैं जिन्हें इंदिरा गांधी ने उस समय पाकिस्तान की जेल से छुड़वा कर बांग्लादेश की सत्ता सौंपी थी। शेख मुजीब पहले विदेशी नेता हैं जिनका तेजस्वी भाषण मैंने सुना था। जेल से छूट कर आने के बाद वे कलकत्ता में बोल रहे थे। समझ में कुछ नहीं आया था क्योंकि वो बांग्ला बोल रहे थे और मैं छोटा था बांग्ला आती नहीं थी। लेकिन वो भाषा के बंधन से परे वाकई जोश भरने वाला भाषण था। तो बांग्लादेश की प्रधानमंत्री को निमंत्रण में विरोध क्यों। जिस देश के लोगों को, उनकी मजबूरी को आपने सरे आम भला-बुरा कहा हो क्या वहां के नेता से आप आंख मिला पाएंगे। हां अगर आपमें शर्म नाम की कोई चीज न हो तो।
अलबत्ता, मालदीव सुंदर द्वीपों का समूह है। वहां के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयूम हैं। उनके पिताजी मौमून अब्दुल गयूम 1978 से 2008 तक देश के राष्ट्रपति रहे हैं। वहां 2012 में राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद को अप्रत्याशित तरीके से इस्तीफा देना पड़ा था, वे भाग कर भारतीय दूतावास में आ गए थे कुछ दिन बरामदे में ही बैठे रहे। बाद में उन्हें जाना पड़ा और गिरफ्तार कर लिए गए। उससे पहले 1988 में कुछ तमिल अलगाववादियों के सहयोग से अब्दुल्ला लुतुफी ने मालदीव में गयूम का तख्ता पलट दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने आपरेशन कैक्टस के तहत सेना की टुकड़ी भेज कर 3 नवंबर 1988 को मालदीव को तख्ता पलट करने वालों से मुक्त करवाया।
नेपाल और भूटान से भारत को कभी कोई समस्या नहीं रही। दोनों देश कभी कभी चीन के प्रभाव में आ जाते हैं। नेपाल कभी दुनिया में अकेला हिंदूराष्ट्र था। अब धर्मनिरपेक्ष है। काठमांडु का पशुपतिनाथ मंदिर वाकई देखने लायक है। वहां लिखा था गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है, लेकिन इसका शायद सख्ती से पालन नहीं होता क्योंकि मैं वहां कुछ ईसाइयों के साथ गया था और किसी ने रोका नहीं।
अंत में मुझे यह कहने में कोई लाग लपेट नहीं कि पड़ोसियों से संबंध सुधरने चाहिए। सब चाहते हैं शांति रहे। मेरा कहना सिर्फ ये है कि लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ बंद होना चाहिए। हो सकता है झूठ बोलकर आप सत्ता पा जाएं, झूठ बोलकर हमेशा सत्ता में बने रहें, लेकिन कोई परम शक्ति है जो ये सब देखती होगी। उस दिन आप अपने आपको क्या जवाब दोगे। इसलिए क्यों न सत्य की राह पर चल कर देश और दुनिया को आगे बढ़ाया जाए। डंके की चोट पर सच बोला जाए। सच को सच माना जाए।
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