रामचंद्रजी और श्रीकृष्ण हर हिंदू के मन में भगवान का रूप ले चुके हैं। ऐसी शायद ही कोई जगह होगी जहां इनकी पूजा न होती हो। धर्मग्रंथ बताते हैं श्रीराम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे और श्रीकृष्ण अपने मामा कंस को मार कर मथुरा के राजा बने थे। हिंदू धर्म में शायद ही कोई देवी-देवता हो जिसने किसी न किसी का संहार न किया है। हम नहीं कह सकते कि साहित्यकारों और भक्तों ने अपने भगवान को किस प्रकार प्रस्तुत किया। उनसे उस तरह लिखवाया गया अथवा उन्होंने स्वप्रेरणा से लिखा अथवा वास्तव में वैसा हुआ। इस संदेह का कारण भी है।
कहा जाता है कि राजा रामचंद्र के बारे में पूरा विवरण वाल्मिकी ने लिखा रामायण या आदि रामायण या उसी तरह के ग्रंथ में। यह भी कहा जाता है कि वाल्मिकी एक दस्यु थे जिन्हें राजा रामचंद्र ने अभयदान दिया था। उसके बाद वाल्मिकी साधु बने और आश्रम में बैठ कर रामायण जैसा ग्रंथ लिखा। यह जिक्र नहीं मिलता कि संस्कृत उन्होंने सीखी थी या उन्हें पहले से आती थी। कुछ ऐसी बातें भी हैं जो आज के मनुष्य के गले आसानी से नहीं उतरतीं। जैसे क्या वाकई श्रीगणेश ने आकर वाल्मिकी के कहे अनुसार लिखा था। वो गणेश भगवान थे या कोई अधिक पढ़े लिखे विद्वान। या आज के जमाने के स्टेनो-टाइपिस्ट। कहना मुश्किल हैं। वैसे, कई अंधभक्त ऐसे भी हैं जो इस सब सवालों के उठाए जाने पर मारने को भी आ सकते हैं। लेकिन ऐसा वे ही करेंगे जो इस बारे में लीक पर चल रहे हैं और कुछ समझना नहीं चाहते या बढ़ते देश के साथ बढऩा नहीं चाहते।
माना जाता है कि राम विष्णु के सातवें अवतार थे और कृष्ण आठवें। यह भी माना जाता है कि कलियुग में भी विष्णु का एक अवतार होगा। यह भी कहा जाता है कि कलियुग में नाम लेना ही काफी होगा किसी चमत्कार की जरूरत नहीं। तो क्या कलियुग का देवता सामने आ चुका है? आज पूरे देश में एक ही नाम है..नमो..नमो..।
राजारामचंद्र और श्रीकृष्ण के राजपाट के क्षेत्र से भी कहीं व्यापक है इस नमो का राज। हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक और पंज-आब से लेकर अरुण आचल तक। इस नमो की कीर्ति इसके जीवनकाल में ही सात समंदर पार तक फैल चुकी है। ऐसा केवल राजा रामचंद्र के समय हुआ था। वो भी इसलिए कि उनकी पत्नी का अपहरण हो गया था और लोग उनकी मदद को आए थे। यहां तो नमो खुद ही दूसरों की मदद को जा रहे हैं। चाहे नेपाल हो या म्यांमार, कजाकिस्तान हो या ताजिकिस्तान। अ ऐलिया (ऑस्ट्रेलिया) हो या अमरीका। हर जगह मोदी मोदी के नारे गूंजे और नमो नमो की पूजा ऐसे हुई मानो कोई देवता या भगवान अवतरित हुआ हो।
नमो की गूंज ऐसे ही नहीं है। उसने भी इस युग के राक्षस को परास्त किया है।
भक्तगण उसका नाम कांग्रेस बताते हैं। भक्तों के अनुसार उसने 66 साल से भारतभूमि पर अंधकार का साम्राज्य कायम कर रखा था। भारतभूमि पर हिंदुओं से ज्यादा मुसलमान होने लगे थे। देश के दो टुकड़े करवा दिए थे। ब्रह्मांड में भारतभूमि को स्कैमइंडिया कहा जाने लगा था। कई लाख करोड़ मुद्राओं के घोटाले होने लगे थे। ऐसे में कट्टर हिंदू संगठन से जुड़े एक क्षत्रप के रूप में नमो उभरे। पूरी भारतभूमि पर उनका गुणगान होने लगा अंत में वर्ष 2014 में उन्होंने कांग्रेस नामक राक्षस को मार गिराया और दिल्ली के सिंहासन पर लोगों ने उन्हें सम्मानपूर्वक बिठाया। चतुर्दिक राज्यों के राजा उनके सिंहासनारोहण के समय पधारे। वे शत्रु-मित्र सभी से समान भाव से मिले। कांग्रेसमुक्त भारत का संकल्प लिया। बहुत हद तक सफल हो चुके हैं। लेकिन जब राजा रामचंद्र को सफल होने में 12 वर्ष लगे और श्रीकृष्ण को भी लगभग उतने ही। तो नमो को सत्तासीन हुए तो अभी महज एक वर्ष ही बीता है।
नमो की फौज कौरवों की फौज से भी बड़ी है। अपनी हर बात मनवा ही लेती है। नमो कांग्रेस को परास्त करने से पहले शेर से भी तेज दहाड़ते थे। एक ही समय में अनेक स्थानों पर दिखाई देते हुए गरजते थे। किंतु विजयश्री हासिल होने के बाद से वे शांत हैं, उनकी जगह भक्तगण दहाड़ रहे हैं।
बताया जा रहा है कि एक हजार साल बाद कोई हिंदू दिल्ली के सिंहासन पर बैठा है। इसी दिल्ली के पास वह हस्तिनापुर है जिसके लिए करीब पांच हजार साल पहले महाभारत का युद्ध हुआ था और श्रीमद्भागवतगीता की रचना हुई थी। लेकिन अब वह हस्तिनापुर महज एक छोटा गांव सा बन कर रह गया है। तो क्यों न नमो को ही कलियुग का भगवान मान लिया जाए।
यह कहना भी सरासर गलत है कि नमो ने कांग्रेसरूपी राक्षस को परास्त करने के लिए असत्य का सहारा लिया इसलिए उन्हें भगवान का दर्जा नहीं दिया जा सकता। आखिर अश्वत्थामा हताहत भी तो हुआ था (नरो वा कुंजरो तो धीरे से मन में), राम ने भी पेड़ के पीछे छिपकर बाण चलाया था। यहां भी छिप छिप कर क्या हो रहा है किसे पता...
जारी..
कहा जाता है कि राजा रामचंद्र के बारे में पूरा विवरण वाल्मिकी ने लिखा रामायण या आदि रामायण या उसी तरह के ग्रंथ में। यह भी कहा जाता है कि वाल्मिकी एक दस्यु थे जिन्हें राजा रामचंद्र ने अभयदान दिया था। उसके बाद वाल्मिकी साधु बने और आश्रम में बैठ कर रामायण जैसा ग्रंथ लिखा। यह जिक्र नहीं मिलता कि संस्कृत उन्होंने सीखी थी या उन्हें पहले से आती थी। कुछ ऐसी बातें भी हैं जो आज के मनुष्य के गले आसानी से नहीं उतरतीं। जैसे क्या वाकई श्रीगणेश ने आकर वाल्मिकी के कहे अनुसार लिखा था। वो गणेश भगवान थे या कोई अधिक पढ़े लिखे विद्वान। या आज के जमाने के स्टेनो-टाइपिस्ट। कहना मुश्किल हैं। वैसे, कई अंधभक्त ऐसे भी हैं जो इस सब सवालों के उठाए जाने पर मारने को भी आ सकते हैं। लेकिन ऐसा वे ही करेंगे जो इस बारे में लीक पर चल रहे हैं और कुछ समझना नहीं चाहते या बढ़ते देश के साथ बढऩा नहीं चाहते।

नमो की गूंज ऐसे ही नहीं है। उसने भी इस युग के राक्षस को परास्त किया है।

भक्तगण उसका नाम कांग्रेस बताते हैं। भक्तों के अनुसार उसने 66 साल से भारतभूमि पर अंधकार का साम्राज्य कायम कर रखा था। भारतभूमि पर हिंदुओं से ज्यादा मुसलमान होने लगे थे। देश के दो टुकड़े करवा दिए थे। ब्रह्मांड में भारतभूमि को स्कैमइंडिया कहा जाने लगा था। कई लाख करोड़ मुद्राओं के घोटाले होने लगे थे। ऐसे में कट्टर हिंदू संगठन से जुड़े एक क्षत्रप के रूप में नमो उभरे। पूरी भारतभूमि पर उनका गुणगान होने लगा अंत में वर्ष 2014 में उन्होंने कांग्रेस नामक राक्षस को मार गिराया और दिल्ली के सिंहासन पर लोगों ने उन्हें सम्मानपूर्वक बिठाया। चतुर्दिक राज्यों के राजा उनके सिंहासनारोहण के समय पधारे। वे शत्रु-मित्र सभी से समान भाव से मिले। कांग्रेसमुक्त भारत का संकल्प लिया। बहुत हद तक सफल हो चुके हैं। लेकिन जब राजा रामचंद्र को सफल होने में 12 वर्ष लगे और श्रीकृष्ण को भी लगभग उतने ही। तो नमो को सत्तासीन हुए तो अभी महज एक वर्ष ही बीता है।
नमो की फौज कौरवों की फौज से भी बड़ी है। अपनी हर बात मनवा ही लेती है। नमो कांग्रेस को परास्त करने से पहले शेर से भी तेज दहाड़ते थे। एक ही समय में अनेक स्थानों पर दिखाई देते हुए गरजते थे। किंतु विजयश्री हासिल होने के बाद से वे शांत हैं, उनकी जगह भक्तगण दहाड़ रहे हैं।
बताया जा रहा है कि एक हजार साल बाद कोई हिंदू दिल्ली के सिंहासन पर बैठा है। इसी दिल्ली के पास वह हस्तिनापुर है जिसके लिए करीब पांच हजार साल पहले महाभारत का युद्ध हुआ था और श्रीमद्भागवतगीता की रचना हुई थी। लेकिन अब वह हस्तिनापुर महज एक छोटा गांव सा बन कर रह गया है। तो क्यों न नमो को ही कलियुग का भगवान मान लिया जाए।
यह कहना भी सरासर गलत है कि नमो ने कांग्रेसरूपी राक्षस को परास्त करने के लिए असत्य का सहारा लिया इसलिए उन्हें भगवान का दर्जा नहीं दिया जा सकता। आखिर अश्वत्थामा हताहत भी तो हुआ था (नरो वा कुंजरो तो धीरे से मन में), राम ने भी पेड़ के पीछे छिपकर बाण चलाया था। यहां भी छिप छिप कर क्या हो रहा है किसे पता...
जारी..
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