Saturday, 18 July 2015

नमो ही राम हैं नमो ही कृष्ण हैं..1

रामचंद्रजी और श्रीकृष्ण हर हिंदू के मन में भगवान का रूप ले चुके हैं। ऐसी शायद ही कोई जगह होगी जहां इनकी पूजा न होती हो। धर्मग्रंथ बताते हैं श्रीराम अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र थे और श्रीकृष्ण अपने मामा कंस को मार कर मथुरा के राजा बने थे। हिंदू धर्म में शायद ही कोई देवी-देवता हो जिसने किसी न किसी का संहार न किया है। हम नहीं कह सकते कि साहित्यकारों और भक्तों ने अपने भगवान को किस प्रकार प्रस्तुत किया। उनसे उस तरह लिखवाया गया अथवा उन्होंने स्वप्रेरणा से लिखा अथवा वास्तव में वैसा हुआ। इस संदेह का कारण भी है। 
कहा जाता है कि राजा रामचंद्र के बारे में पूरा विवरण वाल्मिकी ने लिखा रामायण या आदि रामायण या उसी तरह के ग्रंथ में। यह भी कहा जाता है कि वाल्मिकी एक दस्यु थे जिन्हें राजा रामचंद्र ने अभयदान दिया था। उसके बाद वाल्मिकी साधु बने और आश्रम में बैठ कर रामायण जैसा ग्रंथ लिखा। यह जिक्र नहीं मिलता कि संस्कृत उन्होंने सीखी थी या उन्हें पहले से आती थी। कुछ ऐसी बातें भी हैं जो आज के मनुष्य के गले आसानी से नहीं उतरतीं। जैसे क्या वाकई श्रीगणेश ने आकर वाल्मिकी के कहे अनुसार लिखा था। वो गणेश भगवान थे या कोई अधिक पढ़े लिखे विद्वान। या आज के जमाने के स्टेनो-टाइपिस्ट। कहना मुश्किल हैं। वैसे, कई अंधभक्त ऐसे भी हैं जो इस सब सवालों के उठाए जाने पर मारने को भी आ सकते हैं। लेकिन ऐसा वे ही करेंगे जो इस बारे में लीक पर चल रहे हैं और कुछ समझना नहीं चाहते या बढ़ते देश के साथ बढऩा नहीं चाहते।
माना जाता है कि राम विष्णु के सातवें अवतार थे और कृष्ण आठवें। यह भी माना जाता है कि कलियुग में भी विष्णु का एक अवतार होगा। यह भी कहा जाता है कि कलियुग में नाम लेना ही काफी होगा किसी चमत्कार की जरूरत नहीं। तो क्या कलियुग का देवता सामने आ चुका है? आज पूरे देश में एक ही नाम है..नमो..नमो..।
राजारामचंद्र और श्रीकृष्ण के राजपाट के क्षेत्र से भी कहीं व्यापक है इस नमो का राज। हिमालय से लेकर हिंद महासागर तक और पंज-आब से लेकर अरुण आचल तक। इस नमो की कीर्ति इसके जीवनकाल में ही सात समंदर पार तक फैल चुकी है। ऐसा केवल राजा रामचंद्र के समय हुआ था। वो भी इसलिए कि उनकी पत्नी का अपहरण हो गया था और लोग उनकी मदद को आए थे। यहां तो नमो खुद ही दूसरों की मदद को जा रहे हैं। चाहे नेपाल हो या म्यांमार, कजाकिस्तान हो या ताजिकिस्तान। अ ऐलिया (ऑस्ट्रेलिया) हो या अमरीका। हर जगह मोदी मोदी के नारे गूंजे और नमो नमो की पूजा ऐसे हुई मानो कोई देवता या भगवान अवतरित हुआ हो।
नमो की गूंज ऐसे ही नहीं है। उसने भी इस युग के राक्षस को परास्त किया है।
 भक्तगण उसका नाम कांग्रेस बताते हैं। भक्तों के अनुसार उसने 66 साल से भारतभूमि पर अंधकार का साम्राज्य कायम कर रखा था। भारतभूमि पर हिंदुओं से ज्यादा मुसलमान होने लगे थे। देश के दो टुकड़े करवा दिए थे। ब्रह्मांड में भारतभूमि को स्कैमइंडिया कहा जाने लगा था। कई लाख करोड़ मुद्राओं के घोटाले होने लगे थे। ऐसे में कट्टर हिंदू संगठन से जुड़े एक क्षत्रप के रूप में नमो उभरे। पूरी भारतभूमि पर उनका गुणगान होने लगा अंत में वर्ष 2014 में उन्होंने कांग्रेस नामक राक्षस को मार गिराया और दिल्ली के सिंहासन पर लोगों ने उन्हें सम्मानपूर्वक बिठाया। चतुर्दिक राज्यों के राजा उनके सिंहासनारोहण के समय पधारे। वे शत्रु-मित्र सभी से समान भाव से मिले। कांग्रेसमुक्त भारत का संकल्प लिया। बहुत हद तक सफल हो चुके हैं। लेकिन जब राजा रामचंद्र को सफल होने में 12 वर्ष लगे और श्रीकृष्ण को भी लगभग उतने ही। तो नमो को सत्तासीन हुए तो अभी महज एक वर्ष ही बीता है।

नमो की फौज कौरवों की फौज से भी बड़ी है। अपनी हर बात मनवा ही लेती है। नमो कांग्रेस को परास्त करने से पहले शेर से भी तेज दहाड़ते थे। एक ही समय में अनेक स्थानों पर दिखाई देते हुए गरजते थे। किंतु विजयश्री हासिल होने के बाद से वे शांत हैं, उनकी जगह भक्तगण दहाड़ रहे हैं।
बताया जा रहा है कि एक हजार साल बाद कोई हिंदू दिल्ली के सिंहासन पर बैठा है। इसी दिल्ली के पास वह हस्तिनापुर है जिसके लिए करीब पांच हजार साल पहले महाभारत का युद्ध हुआ था और श्रीमद्भागवतगीता की रचना हुई थी। लेकिन अब वह हस्तिनापुर महज एक छोटा गांव सा बन कर रह गया है। तो क्यों न नमो को ही कलियुग का भगवान मान लिया जाए।


यह कहना भी सरासर गलत है कि नमो ने कांग्रेसरूपी राक्षस को परास्त करने के लिए असत्य का सहारा लिया इसलिए उन्हें भगवान का दर्जा नहीं दिया जा सकता। आखिर अश्वत्थामा हताहत भी तो हुआ था (नरो वा कुंजरो तो धीरे से मन में), राम ने भी पेड़ के पीछे छिपकर बाण चलाया था। यहां भी छिप छिप कर क्या हो रहा है किसे पता...
जारी..

Saturday, 30 May 2015

आओ इतिहास बदलें, लेकिन बदलेंगे क्या ?

नई सरकार की पूरी कोशिश है कि भारत का इतिहास बदला जाये. प्रधान मंत्री से लेकर सभी मंत्री और आरएसएस से जुड़े विद्वान इसे जरूरी बताते हैं. लेकिन कैसे बदलेंगे इतिहास.

एचआरडी या मानव संसाधन मंत्रालय देश का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण विभाग है। इसमें शिक्षा भी शामिल है और शिक्षा प्रणाली को क्या नया स्वरूप देना है वह भी शामिल है। देश के युवाओं को युग की जरूरतों के मुताबिक ढालने के लिए तैयार करना भी, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, वैज्ञानिक जागरूकता बढ़ाना भी। शिक्षा आप समझते हैं..जैसी देंगे वैसे ही भावी पीढ़ियां बनेंगी। नए प्रधानमंत्री गुजरात में करीब 13 साल मुख्यमंत्री रहे हैं। वहां के शिक्षा का स्तर और पाठ्यपुस्तकों में तथ्यात्मक गलतियां सामने आती रही हैं।
खैर, वाजपेयी सरकार में एचआरडी मंत्री थे डा. मुरली मनोहर जोशी जो अच्छे खासे पढ़े लिखे हैं प्रोफेसर रहे हैं। उन्हें इस बार उनकी पार्टी ने किनारे कर दिया। क्योंकि उन्होंने स्कूल चलें हम और सर्वशिक्षा अभियान तो चलाया लेकिन स्कूल कालेजों के सिलेबस का भगवाकरण पूरा करने में नाकाम रहे। अब कोई भी ज्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति शिक्षा मंत्री बनेगा तो वो भारत के इतिहास और अतीत से ज्यादा खिलवाड़ नहीं कर सकेगा। 


अगर उसे प्राचीन भारत का इतिहास बताना है तो वही स्रोत रहेंगे उसे बताने के जो अब तक रहे हैं। वह अपनी मरजी से यह नहीं लिखवा सकता कि लंकापति रावण अज्ञानी था, अनपढ़ था उसने पूरी दुनिया को चौपट कर दिया था और इक्ष्वाकु वंश के राजा राम चंद्र ने अपनी पत्नी या जीवनसंगिनी का साथ जिंदगी भर नहीं छोड़ा। रामराज्य के बारे में मनगढ़ंत बातें भी वह सिलेबस में नहीं लिखवा सकता क्योंकि बहुत सी जानकारी वाल्मीकि रामायण में और अन्य प्राचीन ग्रंथों में मौजूद है, जिसे बदला नहीं जा सकता। 
श्रीकृष्ण की गाथा केवल रासलीला से नहीं उनकी राजनीतिक चतुरता से भी भरी पड़ी है, लेकिन तब यह तो बताना ही पड़ेगा कि कैसे एक इंच जमीन के लिए (या पांच गांवों के लिए या अपने हक के लिए) भाई भाई से लड़े थे, अर्जुन तो हथियार उठाने को तैयार नहीं थे, उन्हें कृष्ण ने कैसे मनाया, तब गीता सार या श्रीमदभगवतगीता को कैसे समझाएंगे।
 यह तो बताना पड़ेगा जब भारत-भूमि पर मुसलमान नहीं आए थे तब लोग लड़ते क्यों थे, राजा एक-दूसरे पर हमला कैसे और क्यों करते थे। वो किस धर्म के होते थे। क्या फिर शैव, शाक्त, वैष्णव आदि आदि की लड़ाई की परतें उधड़नी बंद हो जाएंगी।
क्या प्राचीन वर्ण व्यवस्था और उससे उपजी कुरीतियों को इतिहास के पन्नों से हटा देंगे, तब राजा राम मोहन राय और सती प्रथा का उल्लेख कैसे करेंगे, राणी सती मंदिर का जिक्र करेंगे तो सती प्रथा आज की 21वीं सदी से 22वीं सदी में जाती जनता को कैसे सही बताएंगे। मध्य कालीन भारतीय इतिहास का कोई जानकार यह तथ्य नहीं बदल सकता कि बाबर भारत क्यों आया था, उसने क्या किया, मुगल साम्राज्य का अस्तित्व किताबों से खत्म नहीं किया जा सकता क्यों उसके अवशेष देशभर में बिखरे पड़े हैं। अलाउद्दीन खिलजी की बाजार व्यवस्था, अकबर की जमीन नापतौल की व्यवस्था, कोस मीनार, सर्वधर्म समभाव, दीन ए इलाही को कैसे खत्म करेंगे। महाराणा प्रताप, महारानी लक्ष्मी बाई और उन्हीं के जैसे योद्धाओं की गाथा बताने के लिए यह तो बताना ही पड़ेगा कि उन्होंने संघर्ष किया किससे था। गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस लिखे जाते समय शासन किसका था।
आधुनिक काल में अंग्रेजों का भारत आना, भारतीय संस्कृति को बरबाद करना, सारा सोना लूट कर ले जाने वाला बताओगे तो सारे ज्योतिर्लिंग, कामाख्या पीठ, बद्री-केदार, कैसे बच गए, श्रीपद्मनाभमंदिर से निकले भारी भरकम सोने हीरे जवाहरात के बारे में क्या बताओगे। अंग्रेजों के राज में ये बच कैसे गए, कुतुब मीनार, ताज महल, लाल किला, प्राचीन महल, कैसे रह गए। फिर क्या बताओगे, माना पुष्पक विमान श्रीरामचंद्र के जमाने में था रावण के पास भी कुछ विमान थे जिनमें से एक में उसने सीतामाता का अपहरण कर लिया था, लेकिन यह तो बताना पड़ेगा कि देश का सबसे लंबा सड़क मार्ग शेरशाह सूरी ने बनवाया थे, रेलवे लाइनें भारत में अंग्रेजों ने बनवाई थीं।
 आधुनिक भारत में क्या बताएंगे..अंग्रेजों से लड़कर आजादी किसने हासिल की। शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, जलियांवाला बाग, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे के साथ आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का नाम भी लेना पड़ेगा। गांधी बाबा को दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन से फेंक दिया गया था उसका बदला उन्होंने अंग्रेजों से लिया यह कह कर टाल नहीं सकेंगे। यह बताना पड़ेगा कि उस अधनंगे रहने वाले डेढ़ पसली के से आदमी ने छप्पन इंच का सीना न होते हुए भी अंग्रेजों की नाक में कैसे दम कर रखा था। वीर सावरकर की गाथा और उनकी किताबों के आदर्श बताते समय यह भी बताना पड़ेगा कि वे फ्रांस के बंदरगाह के पास जहाज से कूदे क्यों थे। और भी बहुत सी बातें हैं।

जैसे 1925 में आरएसएस बनने के बाद से उसके स्वयंसेवक कर क्या रहे थे। आजादी की लड़ाई में उनका अपना क्या योगदान था। जो लोग उस समय पुलिस में थे क्या उन्होंने आजादी के लिए लड़ रहे आंदोलनकारियों का साथ दिया था या अंग्रेजों के आदेश पर उन्होंनें आंदोलनकारियों पर लाठी-गोली चलाई थी। भड़कने की जरूरत नहीं सब किसी न किसी कोर्ट के रिकार्ड, किसी न किसी की डायरी में लिखा है। उस समय के गजट में लिखा है। सरकारी, निजी किताबों, डायरियों में दर्ज है। नई किताबें लिखवाने से उस अतीत को नहीं भुलाया जा सकता।
आजादी की लड़ाई के इतिहास में क्या कांग्रेस के नेताओं का योगदान भूल जाओगे, माना जवाहर नेहरू, या अन्य कांग्रेसियों को भूल जाओगे लेकिन जनसंघ कैसे जन्मा, जनसंघ या भाजपा के पुराने नेताओं ने अपनी राजनीति कैसे शुरू की, यह तो बताना पड़ेगा। भाखड़ा नंगल बांध से लेकर रावतभाटा परमाणु रिएक्टर, पहला परमाणु विस्फोट, भारत-पाक युद्ध, बंटवारे में तत्कालीन भाजपा नेताओं (तब भाजपा नहीं थी, लेकिन उसे बाद में बनाने वाले नेता और आरएसएस तो थे) का क्या योगदान था। यह तो बताना पड़ेगा। आज हर आदमी की जेब में मोबाइल फोन और लैपटाप या कम्प्यूटर कैसे पहुंचा, 2जी का घोटाला बताओगे तो यह बताना पड़ेगा कि फोन की दरें इतनी सस्ती कैसे रहीं।



हां, आर्यभट्ट, वराहमिहिर जैसे विद्वानों की जानकारी व्यापक स्तर फैलाई जा सकती है जो जरूरी भी है। यह बताया जा सकता है कि टेस्ट ट्यूब बेबी का प्रचलन घड़ों में संतान के जन्म के रूप में था, उस समय की अत्याधुनिक सर्जरी के तहत गणेश के सिर पर हाथी का सिर लगाया जाना था। यह अलग बात है कि आधुनिक भारत में एक वैज्ञानिक ने सुअर का दिल मनुष्य के शरीर में लगाया तो उसे प्रोत्साहित करने के बजाय उसकी इतनी छीछालेदर की गई कि छि सुअर का दिल..उसे आत्महत्या करनी पड़ी।
लेकिन भाजपा को ज्यादा पढ़े-लिखे शिक्षा मंत्री की शायद जरूरत नहीं है। क्योंकि वह हर कदम पर सवाल उठा सकता है। सवाल खड़े करने वालों के साथ क्या हो रहा है, यह नजर आ रहा है। प्रेस कांफ्रेंसों में भी। भाजपा के शिक्षामंत्री की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाने वालों को जवाब मिल रहा है..कांग्रेस की चाल है..सोनिया की शिक्षा देखो, बताओ राहुल कहां तक पढ़े हैं। मानो सवाल उठाने वाले सब कांग्रेसी ही हैं। अगर हैं तो कांग्रेस के शासन के प्रधानमंत्री और एचआरडी मंत्री की शैक्षणिक योग्यता देख लो। जवाब है उन्होंने कौन सा तीन मार लिया। जीडीपी, ग्रोथ रेट पर चर्चा से पहले उसी अवधि में आपको देखना पड़ेगा कि दुनिया के सबसे ज्यादा पैसे वाले देश अमेरिका में आया सीक्वेस्टर संकट क्या था। कैसे दुनिया की कार सिटी कहलाने वाले शहर को दिवालिया घोषित होने के लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। क्यों यूरोप और अमेरिकी देशों में गंभीर आर्थिक संकट आया।
लेकिन इस सबके लिए पढ़ा लिखा होना भी जरूरी है। भावनाएं भड़काकर या दूसरों की लाई तकनीक का सहारा लेकर कम जानकार लोगों में महान बनना आसान है लेकिन जानकार लोगों (मोटी कमाई के लालच में पड़े उद्योगपतियों नहीं) को मूर्ख कब तक बना पाओगे। मकसद केवल चुनाव जीतना नहीं, उसके बाद काम करना भी है।