
खैर, वाजपेयी सरकार में एचआरडी मंत्री थे डा. मुरली मनोहर जोशी जो अच्छे खासे पढ़े लिखे हैं प्रोफेसर रहे हैं। उन्हें इस बार उनकी पार्टी ने किनारे कर दिया। क्योंकि उन्होंने स्कूल चलें हम और सर्वशिक्षा अभियान तो चलाया लेकिन स्कूल कालेजों के सिलेबस का भगवाकरण पूरा करने में नाकाम रहे। अब कोई भी ज्यादा पढ़ा लिखा व्यक्ति शिक्षा मंत्री बनेगा तो वो भारत के इतिहास और अतीत से ज्यादा खिलवाड़ नहीं कर सकेगा।
अगर उसे प्राचीन भारत का इतिहास बताना है तो वही स्रोत रहेंगे उसे बताने के जो अब तक रहे हैं। वह अपनी मरजी से यह नहीं लिखवा सकता कि लंकापति रावण अज्ञानी था, अनपढ़ था उसने पूरी दुनिया को चौपट कर दिया था और इक्ष्वाकु वंश के राजा राम चंद्र ने अपनी पत्नी या जीवनसंगिनी का साथ जिंदगी भर नहीं छोड़ा। रामराज्य के बारे में मनगढ़ंत बातें भी वह सिलेबस में नहीं लिखवा सकता क्योंकि बहुत सी जानकारी वाल्मीकि रामायण में और अन्य प्राचीन ग्रंथों में मौजूद है, जिसे बदला नहीं जा सकता।
श्रीकृष्ण की गाथा केवल रासलीला से नहीं उनकी राजनीतिक चतुरता से भी भरी पड़ी है, लेकिन तब यह तो बताना ही पड़ेगा कि कैसे एक इंच जमीन के लिए (या पांच गांवों के लिए या अपने हक के लिए) भाई भाई से लड़े थे, अर्जुन तो हथियार उठाने को तैयार नहीं थे, उन्हें कृष्ण ने कैसे मनाया, तब गीता सार या श्रीमदभगवतगीता को कैसे समझाएंगे।


आधुनिक काल में अंग्रेजों का भारत आना, भारतीय संस्कृति को बरबाद करना, सारा सोना लूट कर ले जाने वाला बताओगे तो सारे ज्योतिर्लिंग, कामाख्या पीठ, बद्री-केदार, कैसे बच गए, श्रीपद्मनाभमंदिर से निकले भारी भरकम सोने हीरे जवाहरात के बारे में क्या बताओगे। अंग्रेजों के राज में ये बच कैसे गए, कुतुब मीनार, ताज महल, लाल किला, प्राचीन महल, कैसे रह गए। फिर क्या बताओगे, माना पुष्पक विमान श्रीरामचंद्र के जमाने में था रावण के पास भी कुछ विमान थे जिनमें से एक में उसने सीतामाता का अपहरण कर लिया था, लेकिन यह तो बताना पड़ेगा कि देश का सबसे लंबा सड़क मार्ग शेरशाह सूरी ने बनवाया थे, रेलवे लाइनें भारत में अंग्रेजों ने बनवाई थीं।

आधुनिक भारत में क्या बताएंगे..अंग्रेजों से लड़कर आजादी किसने हासिल की। शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, जलियांवाला बाग, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, मंगल पांडे के साथ आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर का नाम भी लेना पड़ेगा। गांधी बाबा को दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन से फेंक दिया गया था उसका बदला उन्होंने अंग्रेजों से लिया यह कह कर टाल नहीं सकेंगे। यह बताना पड़ेगा कि उस अधनंगे रहने वाले डेढ़ पसली के से आदमी ने छप्पन इंच का सीना न होते हुए भी अंग्रेजों की नाक में कैसे दम कर रखा था। वीर सावरकर की गाथा और उनकी किताबों के आदर्श बताते समय यह भी बताना पड़ेगा कि वे फ्रांस के बंदरगाह के पास जहाज से कूदे क्यों थे। और भी बहुत सी बातें हैं। जैसे 1925 में आरएसएस बनने के बाद से उसके स्वयंसेवक कर क्या रहे थे। आजादी की लड़ाई में उनका अपना क्या योगदान था। जो लोग उस समय पुलिस में थे क्या उन्होंने आजादी के लिए लड़ रहे आंदोलनकारियों का साथ दिया था या अंग्रेजों के आदेश पर उन्होंनें आंदोलनकारियों पर लाठी-गोली चलाई थी। भड़कने की जरूरत नहीं सब किसी न किसी कोर्ट के रिकार्ड, किसी न किसी की डायरी में लिखा है। उस समय के गजट में लिखा है। सरकारी, निजी किताबों, डायरियों में दर्ज है। नई किताबें लिखवाने से उस अतीत को नहीं भुलाया जा सकता।
आजादी की लड़ाई के इतिहास में क्या कांग्रेस के नेताओं का योगदान भूल जाओगे, माना जवाहर नेहरू, या अन्य कांग्रेसियों को भूल जाओगे लेकिन जनसंघ कैसे जन्मा, जनसंघ या भाजपा के पुराने नेताओं ने अपनी राजनीति कैसे शुरू की, यह तो बताना पड़ेगा। भाखड़ा नंगल बांध से लेकर रावतभाटा परमाणु रिएक्टर, पहला परमाणु विस्फोट, भारत-पाक युद्ध, बंटवारे में तत्कालीन भाजपा नेताओं (तब भाजपा नहीं थी, लेकिन उसे बाद में बनाने वाले नेता और आरएसएस तो थे) का क्या योगदान था। यह तो बताना पड़ेगा। आज हर आदमी की जेब में मोबाइल फोन और लैपटाप या कम्प्यूटर कैसे पहुंचा, 2जी का घोटाला बताओगे तो यह बताना पड़ेगा कि फोन की दरें इतनी सस्ती कैसे रहीं।
हां, आर्यभट्ट, वराहमिहिर जैसे विद्वानों की जानकारी व्यापक स्तर फैलाई जा सकती है जो जरूरी भी है। यह बताया जा सकता है कि टेस्ट ट्यूब बेबी का प्रचलन घड़ों में संतान के जन्म के रूप में था, उस समय की अत्याधुनिक सर्जरी के तहत गणेश के सिर पर हाथी का सिर लगाया जाना था। यह अलग बात है कि आधुनिक भारत में एक वैज्ञानिक ने सुअर का दिल मनुष्य के शरीर में लगाया तो उसे प्रोत्साहित करने के बजाय उसकी इतनी छीछालेदर की गई कि छि सुअर का दिल..उसे आत्महत्या करनी पड़ी।
लेकिन भाजपा को ज्यादा पढ़े-लिखे शिक्षा मंत्री की शायद जरूरत नहीं है। क्योंकि वह हर कदम पर सवाल उठा सकता है। सवाल खड़े करने वालों के साथ क्या हो रहा है, यह नजर आ रहा है। प्रेस कांफ्रेंसों में भी। भाजपा के शिक्षामंत्री की शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाने वालों को जवाब मिल रहा है..कांग्रेस की चाल है..सोनिया की शिक्षा देखो, बताओ राहुल कहां तक पढ़े हैं। मानो सवाल उठाने वाले सब कांग्रेसी ही हैं। अगर हैं तो कांग्रेस के शासन के प्रधानमंत्री और एचआरडी मंत्री की शैक्षणिक योग्यता देख लो। जवाब है उन्होंने कौन सा तीन मार लिया। जीडीपी, ग्रोथ रेट पर चर्चा से पहले उसी अवधि में आपको देखना पड़ेगा कि दुनिया के सबसे ज्यादा पैसे वाले देश अमेरिका में आया सीक्वेस्टर संकट क्या था। कैसे दुनिया की कार सिटी कहलाने वाले शहर को दिवालिया घोषित होने के लिए कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। क्यों यूरोप और अमेरिकी देशों में गंभीर आर्थिक संकट आया।
लेकिन इस सबके लिए पढ़ा लिखा होना भी जरूरी है। भावनाएं भड़काकर या दूसरों की लाई तकनीक का सहारा लेकर कम जानकार लोगों में महान बनना आसान है लेकिन जानकार लोगों (मोटी कमाई के लालच में पड़े उद्योगपतियों नहीं) को मूर्ख कब तक बना पाओगे। मकसद केवल चुनाव जीतना नहीं, उसके बाद काम करना भी है।