Monday, 21 November 2016

नोटबंदी के साइड इफैक्ट

इक्कीसवीं सदी के 16वें साल में भारतभूमि पर नरेश नरेंद्र दामोदर दास मोदी का राज था। उन्हें भारतभूमि के सवा सौ कोटि जन प्रेम से नमो कहते थे। उस जमाने में कागज की मुद्रा चलती थी। एक दिन अचानक उन्होंने आकाशवाणी और दूरदर्शन पर घोषणा की कि आज रात से 1000 और 500 रुपए की मुद्रा कागज का टुकड़ा हो गई। लोग सन्न रह गए क्योंकि बहुत से लोगों ने एटीएम नामक मशीन से मुद्रा निकाली थी, वह सभी एक हजार या पांच सौ रुपए के नोट थे। वो सब कागज का टुकड़ा हो गए वादा था काली कमाई को विदेश से लाने का। लेकिन लाने में विफल रहे तो ये चाल चली। भक्तगणों ने इसे बेहतरीन तरीका बताया क्योंकि उन्हें तो पहले ही पता था भगवन क्या करने वाले हैं। फंस गए तो बेचारे वो गरीब जो दिन भर 10,20, 50 या 100 रुपए कमाते थे और इतने सारे छोटे छोटे नोट कहां रखें सोच कर उन्हें 500 या 1000 रुपए के एक नोट में बदलवा कर रख लेते थे कि घर जाएंगे तो लेते जाएंगे। परदेस में ही वो कागज का टुकड़ा हो गए। इससे सात सदी पहले मुहम्मद बिन तुगलक नामक एक शासक हुआ था, उसने इसी तरह राजधानी बदलने का आदेश दिया था...बहुत फजीहत हुई थी। चमड़े के सिक्के भी चलवाए गए थे।
हां, नई व्यवस्था में लोगों से कहा गया कि वे पुराने नोटों को बैंकों में जाकर बदलवा सकते हैं। लोगों के पास बहुत से नोट थे। गृहणियां संकटकाल के लिए नोट संभाल कर रखती थीं। अचानक संकट आया देख लोग बौखला गए। वे नरेश का विरोध भी नहीं कर सकते थे क्योंकि हर जगह नरेश के भक्तगण लाठियां और शब्दबाण लिए खड़े थे। अचानक आदेश आया कि कोई भी चार हजार रुपयों से ज्यादा नहीं बदलवा सकता। दो दिन बाद  आदेश आया दो हजार रुपए से ज्यादा नहीं निकाल सकते। बाकायदा घोषणा कर दी गई कि लोग अपने पास की रकम बैंकों में जमा करवा सकते हैं, लेकिन अगर यह रकम ढाई लाख रुपए से ज्यादा हुई तो 200 प्रतिशत जुर्माना लगेगा।
बाबा रामदेवजी महाराज नेे कहा कि नरेश के फैसले का विरोध करने का मतलब राष्ट्रद्रोह। सवा सौ कोटिजन देशद्रोही घोषित हो गए। बैंकों के बाहर जो लाइन लगी है वो सभी कालाबाजारी, चोर, लुटेरे घोषित हो गए। लोग लाइनों में खड़े धक्के खा रहे हैं...अपने ही पैसे नहीं निकलवा पा रहे...कालाधन रखने वाले चैन की नींद सो रहे हैं...आम जनता को धक्के खाते और बेमौत मरते देख मजे ले रहे हैं...सत्ता पक्ष अहंकार के मद में चूर है...
जय हो बदलाव की...लेकिन ध्यान रहे जनता रहेगी तभी तक सत्ता भी कायम है...जनता नहीं रहेगी तो राज किसपर करेंगे....लाखों राजे-महाराजा आए और चले गए...जनता बची हुई है...बची रहनी चाहिए
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Friday, 22 January 2016

अपने अपने रोहित


राकेश माथुर
कलियुग में गोरी चमड़ी वालों की कालगणना के अनुसार 21वीं सदी के सोलहवे साल के शुरू में भारतखंड के हैदराबाद में कुछ ऐसा हुआ कि सम्राट नमो के खिलाफ विरोधियों ने शंख फूंक दिया। नमो का पूरा मंत्रिमंडल खुद को और शिक्षा मंत्री को सही सिद्ध करने पर उतर आया। हैदराबाद विश्वविद्यालय के एक दलित छात्र को विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया था क्योंकि उसने भारतीय सम्राट के राजनीतिक दल से जुड़ी छात्र इकाई से पंगा ले लिया था। इस कारण सत्ता दल जैसा सदियों से करता आया है, उसे देशद्रोही करार देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसका नाम रोहित था। उसने फंदे पर लटक कर जान दे दी। लेकिन जान देने से पहले वह कुछ लिख गया जिससे पूरा भारतखंड हिल गया। भारतखंड में सदियों पहले कहा गया था कि शूद्रों को पढ़ाई लिखाई से दूर रखा जाए। उस परंपरा का पालन भी होता रहा। लेकिन भारतखंड पर गोरों के राज के बाद मिली आजादी और राजाओं के राज खत्म कर दिए जाने के बाद सत्ता में आने वाली कांग्रेस ने पुरानी परंपराओं पर पानी फेर दिया। उसने शूद्रों और पिछड़े लोगों के लिए विशेष आरक्षण की व्यवस्था कर दी। इसके बाद से शूद्र भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग के नाम से सत्ता में भागीदार होने लगे। उन्हें शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और रोजगार में आरक्षण मिलने लगा। मनुवादी विचारधारा वालों को यह रास नहीं आया।
तो हैदराबाद वाला रोहित इस आरक्षित वर्ग से था। लेकिन उसने विरोधियों को नीचा दिखाने के लिए आरक्षण का सहारा लेने से मना कर दिया और सामान्य वर्ग में शीर्षस्थ स्थान हासिल किया। इससे भी बहुत से लोग तिलमिला गए। एक बार एक याकूब मैमन नाम के आतंकी को फांसी दी गई। रोहित ने फांसी की सजा का विरोध करते हुए इसकी आलोचना की। बस उसके विरोधियों को मौका मिल गया। उन्होंने भारत सम्राट के मंत्री मंडल को लिखा, जवाब में मंत्री मंडल के सदस्यों ने विश्वविद्यालय को लिखा। मारपीट, देशद्रोही होने के आरोप लगे। अग्निपरीक्षा का जमाना नहीं था इसलिए विश्वविद्यालय के प्रभारी ने रोहित को उसके चार साथियों के साथ शिक्षण संस्थान से निकाल दिया। राजनीति तेज हुई तो कुछ पत्र लिख कर रोहित ने फंदे से लटक कर जान दे दी। कुछ लोग कहते हैं कि उसने लिखा कि ऐसे अपमान से तो बेहतर है कि सभी दलितों को मार दिया जाए। अगर उन्हें शिक्षण संस्थानों में प्रवेश दिया जाए तो साथ में मोटी रस्सी भी दी जाए जिसपर लटक कर वे जान दे सकें। सरकारी व्यवस्था के तहत उसे सरकार से कुछ छात्रवृत्ति मिलनी थी जो बंद कर दी गई ती। उसने लिखा वो राशि उसके घरवालों को दे दी जाए। कुछ रकम उसने किसी से उधार ली थी, उसने कभी मांगी नहीं लेकिन उसे दे दी जाए। लगता है गलत समय में जन्म ले लिया था।
ऐसा नहीं भारतवर्ष में रोहित की ही समस्या है। समस्याएं और भी हैं जमाने में। लेकिन सबको देखने की नजर एक ही हो गई है। अगर कोई केंद्रीय सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है तो उसे तत्काल देशद्रोही या सम्राट नमो विरोधी करार दे दिया जाता है। वहीं जिन प्रांतों में नमो समर्थकों की सरकारें नहीं हैं वहां की सरकारों की खुली आलोचना खुद सम्राट नमो और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी खुले आम करते हैं। भक्तगण तत्काल बताना शुरू करते हैं कि फलां ने विरोध किया वो देशद्रोही है..चुनी हुई सरकार की आलोचना करता है। ऐसे में वे भूल जाते हैं कि उनके सम्राट भी चुनी हुई सरकार को बुरा भला कहकर ही सिंहासन तक पहुंचे हैं।
इस काल खंड में शैव, वैष्णव, शाक्त, आदि की जगह हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई आदि ने ले ली है। मुसलमानों ने अपना अलग देश बना लिया इसलिए वे शेष लोगों विशेषकर कथित उच्च हिंदुओं की नजर में पुराने जमाने के शूद्रों से भी नीचे के स्तर पर आ गए हैं। स्वयं को हिंदुऔं का बड़ा नेता बताने वाले दूसरे हिंदू नेताओं को मुसलमानों का नेता बताने लगे हैं, उन्हें मुसलामानों द्वारा बनाए गए देश पाकिस्तान भेजने की चेतावनी देने लगे। देश में असहिष्णुता की लहर चली तो सत्ताधारी लोग असहिण्णु होकर पूछने लगे कहां है असहिष्णुता। इसी बात पर मारकाट मच गई। बहुत से लेखकों और साहित्यकारों ने अपने सम्मान लौटा दिए, उस पर भी विवाद छिड़ा। उन्हें भी देशद्रोही कहा गया। कुछ अभिनेताओं के बयानों पर अराजकता भी हुई। लोग उनके देश-निकाले की मांग करने लगे। ऐसे अभिनेताओं को सरकारी योजनाओं से निकाल दिया गया। लेकिन उन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। वे तो अपनी फिल्मों में व्यस्त हो जाएंगे। इसलिए भक्तगणों ने उनके चलचित्र देने पर ही प्रतिबंध लगाने के आदेश जारी कर दिए हैं।
देखना है यह कहां तक जाता है। प्रभु। कलियुग के इस कालखंड में इसी भू-भाग के राजा-महाराजाओं के युद्ध, विधर्मियों के आक्रमण, सदियों के गैर हिंदुओं के शासन से भी ज्यादा साहित्यिक रस दिख रहा है। देखते जाइए आगे आगे होता है क्या…